करिया, करिया से घनश्याम घनश्याम से घनश्याम मामू और फिर हाजी मोहम्मद सलीम, तक का सफर तय किया हर दिल अजीज किन्नर गुरु घनश्याम मामू ने * ( ब -कलम श्वेतल दुबे) *
* नगर के मुख्य बाजार क्षेत्र स्थित गांधी मंच पर * * श्रद्धांजलि सभा का आयोजन आज। *
अपनी इच्छा अनुसार मां की कब्र के बाजू में दफनाए गए किन्नर हाजी घनश्याम।
श्री रामनाट्य समिति के अध्यक्ष के साथ निभाया समिति के आजीवन संरक्षक का दायित्व।
ताजिया रामलीला डोल ग्यारस दशहरा सहित विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में निभाते थे महत्वपूर्ण भूमिका।
सोहागपुर।
क्षेत्र में घनश्याम नाम से पहचाने जाने वाले किन्नर हाजी मोहम्मद सलीम उर्फ घनश्याम मामू को शुक्रवार को जुमे की नमाज के उपरांत स्थानीय कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक किया गया। उनकी इच्छा के मुताबिक ही उन्हें उनकी मां की कब्र की ठीक बाजू में दफनाया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में विभिन्न धर्मों के लोग मौजूद रहे।
हाजी घनश्याम का नाम एक किन्नर होने के साथ सर्वधर्म समभाव को मानने सहित सभी धर्मों के प्रति सम्मान स्नेह , ना छोटा ना बड़ा की भावना के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा। उन्हें उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों गरीब जनों की सहायता , मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की लीला के मंचन में तन मन धन से सहयोग सहित डोल ग्यारस दशहरा महोत्सव एवं ताजिया सहित अन्य सामाजिक धार्मिक एवं रचनात्मक कार्यक्रमों में सहयोग हेतु भी लोग याद रखेंगे। वर्ष 1939 में विकासखंड के एक ग्राम की एक ब्राह्मण महिला की कोख से जन्में करिया नाम के इस शख्स ने कभी सोचा भी नहीं था कि जब वह इस दुनिया को अलविदा कहेगा तब उसके जनाजे पर रोने बालों की संख्या बहुतायत में होगी।
हाजी घनश्याम ने दैनिक जागरण को विगत कुछ माह पूर्व दिए साक्षात्कार में अपने बाल्यकाल के दौरान संघर्षमय हालात के बारे में खुलकर बातचीत की थी। उन्होंने तब बताया था कि कैसे करिया से घनश्याम एवं घनश्याम से हाजी मोहम्मद सलीम सहित घनश्याम मामू तक की यात्रा का सफर तय किया। सदैव सत्य के साथ चलने वाले घनश्याम ने बड़ी बेबाकी से अपना जीवन जिया। जहां वे बड़े उत्साह के साथ ताजिया का निर्माण कराते थे तो वहीं सावन मास में भगवान श्री कृष्ण का झूला भी डालना नहीं भूलते थे। इसके अलावा जब कुछ दशकों पूर्व वर्ष 1922 से श्री रामनाट्य समिति के बैनर तले रामलीला के मंचन में अर्थ की वजह से अवरोध पैदा हुआ तब उन्होंने यह कहकर सारा खर्चा ओढ लिया कि मैं भी तो आपकी ही बस्ती से कमा खाकर अपनी गुजर-बसर करता हूं। यदि कुछ धन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला के मंचन में लग जाएगा तो कहां का बड़ा आसमान टूट पड़ेगा। और तब से लेकर गत वर्ष संपन्न हुई रामलीला तक उन्होंने तन मन धन से जो सहयोग बना वह दिया। एक डांसर के रूप में वर्ष 1952 में अपने परम मित्र राजेंद्र नामदेव के साथ रामलीला से जुड़े करिया का नाम उस समय के लोगों ने घनश्याम कर दिया था और बतौर डांसर के रूप में रामलीला के मंचन में भर्ती हुए घनश्याम ने कैकई , शूर्पणखा सहित कई किरदारों का जीवंत अभिनय किया जो आज भी लोगों के जेहन में अमिट है।
उन्होंने श्री राम नाट्य समिति के अध्यक्ष पद सहित आजीवन संरक्षक के रूप में भी अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। हाजी घनश्याम को उनकी इच्छा के मुताबिक उनकी मां के कब्र के ठीक बाजू में दफनाया गया है। दरअसल उन्होंने पहले ही मुस्लिम समाज के लोगों उनसे मिलने वाले नगर के लोगों वह अपनी इच्छा बताते हुए कहा था कि उन्हें उनकी मां के बाजू में ही दफनाया जाए। मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों के दूरस्थ क्षेत्रों से आए किन्नरों ने उनके अंतिम दर्शन किए। उनकी अंतिम यात्रा ने लोगों के मन से यह भ्रम भी दूर कर दिया कि किन्नरों का अंतिम संस्कार सामान्य इंसान की भांति नहीं किया जाता। यहां एक सामान्य व्यक्ति की भांति ही उन्हें सुपुर्द ए खाक किया गया है। घनश्याम के अंतिम संस्कार के दौरान अमजद खान , सकील भाई , अहसान भाई , मुन्ना भाई
बंटी मैक्निक सहित मुस्लिम समाज के वरिष्ठ एवं युवा जनों के अतिरिक्त श्री राम कृष्ण भगवान मंदिर के महंत पंडित इंद् कुमार दीवान केएमजे समाज कल्याण समिति के संरक्षक पंडित कैलाश नारायण परसाई , पलकमती साहित्य परिषद से पंडित शैलेंद्र शर्मा , शंभू दरबार से मधुसूदन मुद्गल , पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष संतोष मालवीय , राकेश चौधरी , पूर्व पार्षद राकेश चौरसिया , राजेंद्र नामदेव , अखिलेश मालवीय , हरीश चौरसिया , सतीश चौरसिया , रतन सराठे , मिथिलेश तिवारी गुड्डू पेंटर सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
श्रद्धांजलि सभा आज– आम नागरिकों की ओर से घनश्याम मामू को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन स्थानीय गांधी चौक के गांधी मंच पर शनिवार को शाम 5:00 बजे से किया जाएगा। श्रद्धांजलि सभा में उनसे जुड़े लोग घनश्याम एक सादगी पसंद व्यक्तित्व के साथ बिताए गए समय को सभी के बीच में साझा करेंगे। उल्लेखनीय है कि वर्षों पूर्व स्थानीय महाविद्यालय में किन्नरों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन घनश्याम ने सफलतापूर्वक संपन्न कराया था। वह सम्मेलन ऐतिहासिक रहा था और उसमें देश के विभिन्न राज्यों सहित विदेशों से भी किन्नर समाज के लोग शामिल हुए थे।