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करणपुर के रुद्राभिषेक में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती का उद्बोधन

करणपुर के महा रुद्राभिषेक में मंचासीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती और आचार्य सोमेश परसाई तथा यजमान हरगोविंद पुरबिया

देवता मंत्र के और मंत्र ब्राह्मणों के आधीन है: द्वारका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी सदानन्द सरस्वती जी महाराज

जिस घर मे स्त्री का सम्मान नही होता वहां से लक्ष्मी सदैव के लिए चले जाती है : “आचार्य सोमेश परसाई जी”

सोहागपुर। समीपवर्ती ग्राम पंचायत करणपुर में आयोजित सप्त दिवसीय सवा करोड़ शिवलिंग निर्माण एवम महा रुद्राभिषेक में तृतीय दिवस पर अनंत श्री विभूषित पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानन्द सरस्वती जी महाराज जी का आगमन हुआ मुख्य यजमान श्री हरगोविंद पुरविया जी ने महाराज श्री का परिवार सहित पादुका पूजन किया ।ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद जी ,पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री सोमेश परसाई जी का स्वागत पूजन किया ।

शंकराचार्य जी के आगमन पर श्रद्धालुओं का सैलाब

तत्पश्चात जगतगुरु शंकराचार्य जी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि लोग कहते है कि हिन्दू लकड़ी पत्थर मिट्टी को पूजते है वास्तविकता में ये हमारी प्रतीकोपासना का एक प्रकार है। केवल हम ही है जो वृक्ष ,पृथ्वी,जल आकाश और प्रकृति की पूजा करते है । केवल सनातन धर्म ही मात्र है जो किसी मनुष्य द्वारा नही बनाया गया केवल सनातन धर्म ही शाश्वत है । क्योंकि ये मनुष्य के द्वारा नही बनाया गया है इसीलिए यह शाश्वत है । सनातन धर्म मे जल आकाश वृक्ष सहित सम्पूर्ण प्रकृति की उपासना होती है ।इसके पश्चात शंकराचार्य जी ने कहा मूर्ति में प्रमुख तत्व होता है ।

आक्रांताओं द्वारा मूर्ति को खंडित करने पर भी तत्त्व सुरक्षित है ।मूर्ति तो पुनर्स्थापित की जा सकती है किंतु तत्व नही ।जगतगुरु शंकराचार्य जी ने कहा कि धर्म के पालन करने से धर्म की रक्षा होती है और जो कोई धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी सदैव रक्षा करता है।इसलिए धर्म का पालन ही हमारा सर्वोपरि कर्तव्य है।
जगतगुरु शंकराचार्य जी ने कहा कि माता पिता और गुरु के ऋण से कभी मुक्त नही हुआ जा सकता

।मनुष्य की कामनाएं कभी समाप्त नही होती है ।मनुष्य सौ साल के जीवन के लिए हजार साल का संचय करते हैं ।यही तृष्णा है ।तृष्णा का अंत नही है ।जो प्राप्त है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए ।भगवान की भक्ति से ही जीवन मे संतुष्टि आती है ।मनुष्य जन्म भाग्य से प्राप्त होता है इसका उपयोग पशुवत नही होना चाहिए ।धर्म की गति सूक्ष्म होती है इसलिए धर्म के पालन करने से ही उद्धार संभव है ।तुलसीदास जी ने मनुष्य देह को मोक्ष का द्वार कहा है

शंकराचार्य जी ने कहा कि रामायण रामचरित मानस शब्द का जिनको अर्थ नही मालूम ऐसे लोग चौपाई की व्याख्या कर रहे हैं।शास्त्र कहते है
पल्लभग्राही ज्ञान देश समाज संस्कृति का भला नही होगा ।देवता मंत्रो के और मंत्र ब्राह्मणों के आधीन होते हैं इसलिए ब्राह्मणों का अपमान नही करना चाहिए ।

आचार्य सोमेश परसाई

आचार्य श्री सोमेश परसाई जी ने कहा कि हरि कृपा के बिना जीवन मे संत का आगमन नही होता ।करनपुर के लिए यह सौभाग्य का अवसर है कि नगर में पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज पधारे है ।द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य जी का आना ही कार्यक्रम की सफलता का सूचक है पूज्य गुरुदेव ने श्रीसूक्त की व्याख्या करते हुए कहा कि जिस घर मे नारी का सम्मान नही होता वहां से लक्ष्मी चले जाती है ।आचार्य श्री ने शिव शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि शिव शब्द में जो ‘ई’ की मात्रा है वह भगवती का बीज है बिना शक्ति के शिव शव के समान है गुरुदेव ने दुर्गासप्तशति का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवती स्वयं कहती हैं कि संसार में जितनी भी विद्याएँ और स्त्रियां हैं उन सब में भगवती का वास है अतः नारी सम्मान परम आवश्यक है शास्त्र भी कहते हैं कि जहाँ नारी की पूजा होती है वह स्थान स्वर्ग के समान है स्त्री किसी भी रूप में हो माँ पत्नी बेटी या कोई और उसका सम्मान होना चाहिए
आचार्य श्री ने कहा कि प्रयास करें कि बच्चे संस्कारवान बने जिससे वे परिवार सेवा धर्म सेवा व राष्ट्र सेवा के लिए आगे आएं ..दूसरी भाषा ,दूसरी संस्कृति ,दूसरा धर्म का सम्मान अच्छी बात है यह हमारी सनातन परंपरा है किन्तु अपने धर्म संस्कृति को भूल कर या उपेक्षा कर के ऐसा करना गलत है।

कार्यक्रम का प्रारंभ मे प्रातः पंडित पंकज पाठक जी व घनश्याम शर्मा जी के निर्देशन में मुख्य यजमान श्री हरगोविंद पुरविया जी द्वारा मंडल पूजन गौ गणेश गौरी पूजन के साथ प्रारम्भ हुआ तत्पश्चात शिवभक्तों ने भक्ति भाव से रुद्री निर्माण किया ।
इसके पश्चात भगवान शिव का रुद्राभिषेक हुआ ।श्रध्देय आचार्य श्री ने बताया कि भगवान शिव को अभिषेक ,भगवान विष्णु को कीर्तन,देवी को अर्चन सूर्य को अर्घ्य और गणेश जी को तर्पण अत्यंत प्रिय है।जिस किसी के यहां संतान नही है यदि वो एक वर्ष भगवान गणेश को बिना जड़ की 21 दूर्वा अर्पण करता है तो निश्चित ही उसके यहां संतान होती है।धन प्राप्ति के लिए भगवान गणेश पंचामृत से तर्पण करने का भी प्रयोग आचार्य श्री ने शिव भक्तों को बताया ।इसके पश्चात भगवान शिव का दूध दही सहित नाना प्रकार के फलों के रस आदि से अभिषेक हुआ ।भगवान की दिव्य भस्म आरती व महाआरती हुई ।

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