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देश के प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी जी की आज पुण्यतिथि है सोहागपुर और मढ़ई आए थे प्रभाष जी

परम श्रद्धेय प्रभाष जोशी जी

आज पुण्यतिथि पर विशेष

प्रभाष जी ने कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया

और उसकी कीमत भी चुकाई

देश के सबसे मूर्धन्य संपादकों में शुमार प्रभाष जोशी ने पूरी जिंदगी मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता के लिए समर्पित कर दी। जीवन के आखिरी कुछ साल उन्होंने ‘पेड न्यूज’ के खिलाफ आवाज बुलंद की और पत्रकारिता में शुचिता के लिए प्रयासरत रहे। वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय कहते हैं, ‘प्रभाष जोशी ने सबसे पहले पेड न्यूज के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने पेड न्यूज के खिलाफ अभियान शुरू किया और इसको लेकर बड़ी बहस छिड़ी। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके चाहने वालों की यह जिम्मेदारी है कि पत्रकारिता को नुकसान पहुंचा रही पेड न्यूज की व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करें।’ ‘जनसत्ता’ के जरिए हिंदी पत्रकारिता की गरिमा को नए शिखर पर ले जाने वाले जोशी लेखनी के दायरे को हमेशा विस्तृत करने के पक्ष में रहे। उनकी लेखनी का दायरा भी बहुत विस्तृत था, जिसमें राजनीति से लेकर खेल तक शामिल हैं। ‘चौथी दुनिया’ के संपादक संतोष भारतीय कहते हैं, ‘प्रभाष जोशी गणेश शंकर विद्यार्थी की परंपरा को आगे बढाने वाले पत्रकार थे। उन्होंने पत्रकारिता को नया आयाम दिया। आज के दौर में जोशी की पत्रकारिता को ही उदाहरण के तौर पर पेश करने की जरूरत है।’ विनोबा भावे की पदयात्रा और जेपी आंदोलन के प्रत्यक्ष गवाह रहे जोशी का जन्म 15 जुलाई, 1936 को भोपाल के निकट आष्टा में हुआ। जोशी ने ‘नई दुनिया’ से पत्रकारिता की शुरुआत की।

माखन नगर बाबई में दादा माखनलाल की मूर्ति पर माल्यार्पण करते प्रभाष जी

बाद में वह सरोकार परक पत्रकरिता के लिए मशहूर रामनाथ गोयनका के साथ जुड़े। यहीं से उनकी क्रांतिकारी लेखनी और संपादकीय हुनर की गवाह पूरी दुनिया बनी। साल 1983 में ‘जनसत्ता’ की शुरुआत प्रभाष जोशी के नेतृत्व में हुई। 80 के दशक में यह अखबार जनता की आवाज की शक्ल ले चुका था। पंजाब में खालिस्तानी अलगाववाद और बोफोर्स घोटाले जैसे कुछ घटनाक्रमों में इस प्रकाशन ने निर्भीकता और निष्पक्षता का जोरदार परिचय दिया। यह सब जोशी के विलक्षण नेतृत्व के बल पर संभव हुआ। जोशी की मूल्य आधारित पत्रकारिता के बारे में ‘जनसत्ता’ के पूर्व स्थानीय संपादक और वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव कहते हैं, ‘मैंने प्रभाष जोशी के साथ बतौर स्थानीय संपादक काम किया। मेरा मानना है कि उन्होंने हिंदी पत्रकारिता की गरिमा को बढ़ाने और उसे एक नए शिखर पर ले जाने काम किया।’ सक्रिय पत्रकारिता से अलग होने के बाद जोशी ने अपनी लेखनी को विराम नहीं दिया। जीवन के आखिरी कुछ साल में उन्होंने ‘पेड न्यूज’ के खिलाफ जोरदार आवाज बुलंद की। उनके प्रयासों का नतीजा था कि पेड न्यूज के खिलाफ पहली बार एक बहस छिड़ी और भारतीय प्रेस परिषद ने इस संदर्भ में जांच कराई। जोशी क्रिकेट के बड़े शौकीन और मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बड़े मुरीद थे। पांच नवंबर, 2009 को आस्ट्रेलिया के खिलाफ सचिन की ऐतिहासिक पारी को देखने के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। पुण्यतिथि पर शत शत नमन ।

“प्रभाष जी ने कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया” ** “सोपान जोशी”

सोपान जोशी

प्रभाष जोशी के पुत्र पत्रकार सोपान जोशी का कहना है कि वह पत्रकारिता का कैरियर छोड़कर दिल्ली आए थे गांधी शांति प्रतिष्ठान में काम करने के लिए यहीं पर उनकी मुलाकात इंडियन एक्सप्रेस के मालिक श्री रामनाथ गोयनका से हुई और उन्होंने उनसे इंडियन एक्सप्रेस में काम करने को कहा और यह भी आश्वस्त किया कि उन्हें यहां पर अपने मूल्यों से कोई समझौता नहीं करना पड़ेगा । और इस बात को उन्होंने हमेशा निभाया भी सोपान जी ने आगे कहा कि- “प्रभाष जी कहा करते थे अपने मूल्यों पर और समझ के हिसाब से अपना काम करना चाहिए और उसकी कीमत चुकाने को भी तैयार रहना चाहिए “। वह अपने मूल्य छोड़ने के लिए कभी तैयार नहीं थे और उसकी कीमत भी उन्होंने चुकाई और उनके साथ काम करने वालों ने भी

सोहागपुर की मढ़ई पहुंचते हुए प्रभात जी सुप्रसिद्ध साहित्यकार आलोचक प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह साथ में दुष्यंत जी के पुत्र आलोक त्यागी और उनकी पत्नी कमलेश्वर जी की पुत्री ममता त्यागी
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