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जब महात्मा गांधी ने माखनलाल की जन्मभूमि को किया नमन,             बापू का बाबई आगमन बना इतिहास   7 जनवरी 1934 को बापू पहुंचे बाबई

सोहागपुर।  साहित्य देवता, कवि, लेखक, पत्रकार एवं स्वतंत्रता सेनानी दादा माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती के अवसर पर माखन नगर बाबई में गौरव दिवस मनाया जा रहा है। इस अवसर पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है, और समूचे नगर को रंगोली एवं विद्युत साज-सज्जा से सजाया गया है।

माखनलाल चतुर्वेदी स्मारक को भी विशेष रूप से सजाया गया है। इस आयोजन की कमान स्वयं विधायक विजयपाल सिंह राजपूत ने संभाली है। दादा माखनलाल के कृतित्व और व्यक्तित्व के कारण आज बाबई की पूरे देश में एक विशिष्ट पहचान और सम्मान है।

बापू का ऐतिहासिक आगमन

महात्मा गांधी ने स्वयं माखनलाल चतुर्वेदी की जन्मभूमि को नमन करने की इच्छा व्यक्त की थी। यह ऐतिहासिक दिन था 7 जनवरी 1934, जब सोहागपुर के मंच पर आते ही बापू का पहला वाक्य था—

“जल्दी करो, मुझे बाबई जाना है।”

बाबई पहुंचकर मंगलवारा बाजार में मंच पर बैठते ही बापू ने कहा—

“30 दिसंबर को नहीं आ सका, आप लोगों को बड़ा कष्ट हुआ, इसीलिए मैं माफी मांगता हूँ। बाबई, भाई मक्खन लाल की जन्मभूमि है, इसलिए पहले से ही यहाँ आने की इच्छा थी।”

गांधीजी जिस कार में बाबई आए थे, वह बागरा के सरदार बुद्धासिंह की थी, और वही इसके कुशल चालक थे। बाबई से सोहागपुर लौटने के बाद बापू ने रात्रि विश्राम खंडेलवाल निवास में किया और 8 जनवरी 1934 को हरदा के लिए प्रस्थान किया।

30 दिसंबर 1933 का रोचक प्रसंग

बापू 30 दिसंबर 1933 को भी सोहागपुर आए थे और तब भी उन्हें बाबई जाना था। लेकिन होशंगाबाद की ओर से तवा का पुल बाधा बन गया था, जिसके कारण उनका आगमन संभव नहीं हो सका।

अद्भुत संयोग

यह एक अद्भुत संयोग है कि महात्मा गांधी और माखनलाल चतुर्वेदी की पुण्यतिथि एक ही दिन— 30 जनवरी— को आती है।


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