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सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों की गणना और गिद्ध सर्वेक्षण शुरू आज से 19 तक गिद्धों की गणना

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों की गणना और गिद्ध सर्वेक्षण शुरू

सोहागपुर। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (एसटीआर) में वन्य प्राणियों की संख्या और उनकी प्रजातियों का पता लगाने के लिए व्यापक स्तर पर गणना अभियान शुरू हो गया है। इस अभियान में अत्याधुनिक ट्रैप कैमरों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे जंगल के अलग-अलग हिस्सों में वन्यजीवों की गतिविधियों का सटीक अध्ययन किया जाएगा।

एसटीआर की फील्ड डायरेक्टर राखी नंदा ने जानकारी देते हुए बताया कि पहले चरण में पिपरिया बफर जोन में यह कार्य किया जा रहा है, जहां 800 ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं। इन कैमरों से जंगल में मौजूद विभिन्न वन्यजीवों की उपस्थिति, उनकी संख्या और व्यवहार से जुड़े महत्वपूर्ण डेटा एकत्र किए जाएंगे। यह गणना लगभग 25 दिनों तक चलेगी और इसके आधार पर रिजर्व में मौजूद वन्यजीवों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी।

कैमरा ट्रैपिंग: आधुनिक तकनीक से जंगल का अध्ययन

कैमरा ट्रैपिंग एक वैज्ञानिक विधि है, जिसमें जंगल के विभिन्न हिस्सों में इंफ्रारेड और मोशन-सेंसिंग कैमरे लगाए जाते हैं। यह तकनीक वन्यजीवों की गुप्त गतिविधियों को रिकॉर्ड करने में अत्यंत प्रभावी होती है, क्योंकि इसमें जानवरों की मौजूदगी को बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के कैद किया जा सकता है।

कैमरा ट्रैपिंग से मिलने वाले प्रमुख लाभ:

  1. वन्यजीवों की संख्या और प्रजातियों की पहचान: हर प्रजाति के वन्यजीव की तस्वीर मिलने से उनकी सटीक संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है।
  2. शिकारियों और अवैध गतिविधियों पर नजर: अगर कोई अवैध गतिविधि होती है, तो कैमरे उसे भी रिकॉर्ड कर सकते हैं।
  3. वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास का अध्ययन: यह पता लगाया जा सकता है कि कौन-से जानवर जंगल के किन क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

गिद्ध गणना: विलुप्ति के संकट से घिरे पक्षियों का संरक्षण प्रयास

19 फरवरी तक सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में गिद्धों की गणना भी की जाएगी। यह सर्वेक्षण कोर और बफर जोन के उन सभी संभावित स्थानों पर किया जाएगा, जहां गिद्धों का निवास पाया जाता है।

गिद्धों की घटती संख्या और उसके कारण

गिद्ध भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि वे मृत जीवों को खाकर प्राकृतिक सफाईकर्ता की भूमिका निभाते हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में उनकी संख्या में भारी गिरावट आई है, जिसका प्रमुख कारण डाइक्लोफेनेक (Diclofenac) नामक दर्द निवारक दवा है, जो मवेशियों के उपचार में उपयोग की जाती थी। जब गिद्ध इन मवेशियों के शव खाते थे, तो यह दवा उनके शरीर में पहुंचकर जहरीला असर डालती थी, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती थी।

गिद्ध संरक्षण के लिए उठाए गए कदम:

  1. डाइक्लोफेनेक पर प्रतिबंध: भारत सरकार ने 2006 में इस दवा पर प्रतिबंध लगाया था।
  2. गिद्ध प्रजनन केंद्र: विभिन्न जगहों पर गिद्धों के संरक्षण और प्रजनन के लिए विशेष केंद्र स्थापित किए गए हैं।
  3. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में नियमित निगरानी: इस गणना के माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि कितने गिद्ध एसटीआर में मौजूद हैं और उनकी आबादी किस दर से बढ़ या घट रही है।

मढ़ई और चूरना में दूसरा चरण

पहले चरण के पूरा होने के बाद, मढ़ई और चूरना क्षेत्रों में भी कैमरा ट्रैपिंग की जाएगी। मढ़ई और चूरना दोनों क्षेत्र वन्यजीवों से भरपूर हैं और यहाँ बाघ, तेंदुए, भालू, सांभर, चीतल, नीलगाय और कई अन्य प्रजातियां पाई जाती हैं।

क्या उम्मीद की जा रही है?

इस सर्वेक्षण के बाद एसटीआर में वन्यजीवों की सटीक गणना और उनकी स्थिति का स्पष्ट आकलन किया जा सकेगा।

संरक्षण रणनीतियाँ तैयार करने में मदद मिलेगी, ताकि वन्यजीवों के लिए बेहतर वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।

गिद्धों की संख्या बढ़ाने और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जा सकेंगे।


निष्कर्ष

सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में यह गणना अभियान वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। अत्याधुनिक तकनीक के उपयोग से वन्यजीवों की स्थिति को गहराई से समझने में मदद मिलेगी। गिद्धों की गणना से इस संकटग्रस्त प्रजाति की वास्तविक स्थिति का आकलन किया जाएगा और उनके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।

वन्यजीव प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए यह एक सुनहरा अवसर है कि वे इस महत्वपूर्ण परियोजना का हिस्सा बनें और प्रकृति के संरक्षण में अपनी भूमिका निभाएं।

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