“लघु कथा मढई की” सवाल था सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान के अस्तित्व के संकट का और वह खतरा आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है तथा और ज्यादा गंभीर ?
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान के अस्तित्व का सवाल उठाते हुए लिखे हुए मेरे इस लेख की उम्र 8 सितंबर 2022 को पूरे 22 साल की हो चुकी है
सन 2000 में लिखा हुआ यह रंगीन लेख मढई के विकास के रास्ते “मील का एक पत्थर” साबित हुआ

यद्यपि 2 नवंबर 97 में दैनिक नईदुनिया में इसी शीर्षक से प्रकाशित ब्लैक एंड वाइट आर्टिकल से मढई को पर्यटन स्थली बनाने के लिए शुरुआत हो चुकी थी


दैनिक सांध्य प्रकाश मैं 8 सितंबर 2000 को प्रकाशित इस लेख ने कुछ और माहौल बनाया कुछ और लोगों का ध्यान आकर्षित करा
कई खबरें विभिन्न आवश्यकताओं को लेकर 8/ 8 कालम 3 और 5/6 कालम की भी छपी
सांध्यप्रकाश में मुझे आदरणीय विश्शू
भैया ( स्वर्गीय विश्वेश्वर शर्मा )का भरपूर सहयोग मिला
तो दैनिक नई दुनिया में उसके मालिक डॉ सुरेंद्र तिवारी जी जो कि पर्यावरणविद भी है और वाइल्ड लाइफ बोर्ड के मध्य प्रदेश के उपाध्यक्ष भी का आशीर्वाद साथ रहा

तो उन्हे बताया जाएगा यहां से सोहागपुर जाएं और वहां से मढ़ई और चूरना के रास्ते मिल जाएंगे
उनके सहयोग से लेख भी छपा और मढई के उन्नयन और उत्थान और विकास में मदद भी मिली ।
क्षेत्र के विकास में होशंगाबाद नरसिंहपुर संसदीय क्षेत्र के पूर्व सांसद आदरणीय रामेश्वर नीखरा जी का जो सहयोग मुझे मिलता रहा है वह मढई के मामले में भी मिला ।

और आज मढई अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सोहागपुर की एक बड़ी पहचान बन गया है । जबकि पान परमल सुराही सोहागपुर की पुरानी पहचान है
मढई की वजह से सोहागपुर सहित पूरे जिले को करोड़ों रुपए का व्यवसाय मिल रहा है
सिर्फ 8 लोगों का स्टाफ हुआ करता था आज डेढ़ सौ से ज्यादा का स्टाफ है

सिर्फ लाक डाउन में 4 महीने बंद रहने के कारण अकेले मढई में 7 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था
और समूचे एसटीआर को 35 करोड़ की चपत लगी ।
अंदाज लगाया जा सकता है कि आज मढई की हैसियत और और हस्ती क्या है
जहां लोग उपजाऊ जमीन सस्ती से सस्ती भी खरीदना पसंद नहीं करते थे
वहीं आज वहां करोड़ों की लागत से बंजर जमीन खरीदने को तैयार है
