जयंती पर याद किए गए कवि दुष्यंत कुमार
दुष्यंत संग्रहालय में गूंजे दुष्यंत के बोल
दुष्यंत कुमार हमेशा संघर्ष करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं : अरुण पाण्डेय
आप यदि समाज से प्यार करते हैं तो समाज भी आपको प्यार करेगा : आलोक त्यागी
( नीलम तिवारी)
भोपाल . “दुष्यंत कुमार हमेशा संघर्ष करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से पूरे समाज को एक नयी उर्जा दी और अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने की बात की “- ये उद्गार थे मानसरोवर ग्लोबल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफे अरुण पाण्डेय के. वे दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा आयोजित दुष्यंत कुमार जयंती के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. विशेष अतिथि दुष्यंत कुमार के सुपुत्र श्री आलोक त्यागी ने कहा कि आप यदि समाज से प्यार करते हैं तो समाज भी आपको प्यार करेगा, यह बात दुष्यंत जी पर पूरी तरह लागू होती है”.
दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने दुष्यंत कुमार की जयंती के अवसर पर कालजयी साहित्यकारों के चित्रों पर एकाग्र चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया. प्रदर्शनी के छायाकार श्री जगदीश कौशल थे.
दुष्यंत कुमार जयंती के अवसर पर श्री विकास सिर्मोलिया ने दुष्यंत कुमार की आठ ग़ज़लों को पाश्चत्य शैली में प्रस्तुत कर सबको उर्जस्वित कर दिया. पाश्चत्य शैली में प्रस्तुत ग़ज़लों के हरेक शेर पर तालियों से सभागार गूँज उठता था.
निदेशक राजुरकर राज ने संग्रहालय की परम्परा का उल्लेख करते हुये कार्यक्रम का सञ्चालन किया. समारोह में श्री जगदीश कौशल ने अपना साठ वर्ष पुराना फोटोग्राफिक कैमरा संग्रहालय को धरोहर के रूप में भेट किया वहीँ श्री सुधांशु पटेरिया ने अपने पिता वरिष्ठ साहित्यकार श्री मनोहर पटेरिया मधुर की धरोहर संग्रहालय को भेंट की.
विकास सिर्मोलिया ने जो गजले प्रस्तुत की, वे थीं :
कहां तो तय था चरागा हरेक घर के लिए।
हालते जिस्म सूरते जां और भी खराब।
परिंदे अब भी पर तोले हुए हैं।
बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं।
ये सारा जिस्म झुकके बोझ से दोहरा हुआ होगा।
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए।
पक गई हैं आदतें बातों से सर होगी नही।
संग्रहालय की प्रतिष्ठा और उसकी गतिविधियों से प्रभावित होकर मुख्य अतिथि श्री अरुण पाण्डेय ने तत्काल दुष्यंत संग्रहालय की सदस्यता भी ग्रहण कर ली.
समारोह के आरम्भ में स्वागत वक्तव्य अध्यक्ष श्री रामराव वामनकर ने दिया और अंत में आभार श्री अशोक निर्मल ने व्यक्त किया.