चचा इलियास …. आजीवन प्रकृति, पर्यावरण, और वन प्राणियों के लिए करते रहे संघर्ष
पेड़ पौधों और पशु पक्षियों को समर्पित
पर्यावरणविद सैयद इलियास हुऐ सुपुर्द ए खाक।
अंतिम इच्छा के मुताबिक मां की कब्र की बगल में दफनाऐ गए
सोहागपुर।
अलमस्त अल्हड़ और खुश मिजाज व्यक्तित्व के धनी 90 वर्षीय पर्यावरणविद सैयद इलियास शनिवार को पलकमती नदी रेलवे पुल के पास कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक किए गए। उन्हें उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक उनकी मां की कब्र के बगल में दफनाया गया ।
वन और वन्य प्राणियों के प्रति समर्पित इस व्यक्तित्व की अंतिम यात्रा में नगर के गणमान्य नागरिकों और जनप्रतिनिधियों के साथ दिल्ली मुंबई अहमदाबाद हैदराबाद भोपाल इंदौर सहित कई महानगरों से आए उनके रिश्तेदार और परिजन शामिल हुए ।
जल जंगल जमीन पेड़ पौधे पशु पक्षी के प्रति उनका समर्पण और सुरक्षा तथा संरक्षण का जज्बा उनकी अंतिम यात्रा में भी उनको लेकर चर्चा का सबक बना ।
जात पात ऊंच-नीच के बंधन से मुक्त और परे यह शख्सियत चच्चा के नाम से मशहूर थी
समाज सेवा में भी उनका अच्छा खासा दखल था पुलिस के परिवार परामर्श केंद्र के वे बुजुर्ग और काबिल सदस्य थे जीवन के अंतिम दौर में भी उन्होंने अपनी सेवाएं परिवार परामर्श केंद्र को दी
उनके परामर्श और समझाईश से कई टूटते परिवार टूटने से बचे और कई उजड़े परिवारों को जुड़ने का मौका मिला और आज वे आबाद हैं ।
वन और वन्य प्राणियों के प्रति उनका खास लगाव था
उनकी प्रवृत्ति को जानते और समझते हुए उनके प्रति में काफी संवेदनशील थे
रात्रि कालीन पर्यटन हो अथवा वन्य प्राणियों का विस्थापन यहां तक कि जंगल में शोर शराबे के प्रति भी वे खिलाफ थे । उनका मानना था कि आज संतुलित पर्यटन व्यवसाय वन्य प्राणी जीवन निगल जाएगा ।
और आज हो भी यही रहा है
असंतुलित पर्यटन गतिविधियों और वाहनों की शोर-शराबे से विचलित वन्य प्राणी जंगल छोड़कर अब बस्तियों की ओर मुखातिब हो चुके । जिससे इंसानो और पालतू पशुओं पक्षियों को खतरा बढ़ रहा है । आए दिन वन विभाग के लोग रिहाई शो में पहुंचकर अलर्ट करवा रहे हैं मुनादी करवा रहे हैं ।
वन्य प्राणी जीवन को बचाने और प्राकृतिक वातावरण बना रहने देने के लिए उन्होंने उन्होंने एनटीसीए के आला अधिकारियों सहित प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति तक पत्राचार किया इसके अतिरिक्त उनकी ही पहल पर वन्य प्राणियों की लोकेशन उजागर करने पर भी प्रतिबंध संबंधी अधिसूचना जारी की गई थी ।
जिससे अखबारों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में वन्य प्राणियों की लोकेशन उजागर करने संबंधित समाचारों पर संज्ञान लिया जाने लगा था। खोजी प्रवृत्ति का होने के कारण प्राकृतिक रहस्यों को भी वे उजागर करते रहते थे कूकरा के घने गहरे जंगलों में मानसून की पूर्व जानकारी देने वाला चमत्कारिकल रिमिया नाला उनकी ही खोज थी नर्मदा जी के बहाव के निशान खोजते खोजते चच्चा वहां पहुंचे थे वाक्या सन 91 का है मानसून आने से कोई 15- 20 दिन पूर्व इस नाले की तलहटी में पानी के बुलबुले छूटने लगते हैं और इसकी बहाव की जानकारी लगते ही स्थानीय आदिवासी नारियल अगरबत्ती भेंटकर उसकी पूजा करते हैं और उसके बहाव से उन्हें अंदाजा लग जाता था कि इस वर्ष वर्षा कैसी रहेगी जिसकी मुताबिक वो फसल बोते थे यहां st-r के संचालक रह चुके एस के सिंह साहब ने इस हकीकत को जांचा और परखा का भी था आज भी यह शोध और अनुसंधान का विषय है